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डर की सकारात्मकता

      एक वैश्विक महामारी ( कोविड 19 या कोरोना वायरस ) के दौर में अकेले बैठे - बैठे आज बस यूं ही याद आया कि कभी मैं डर की वकालत किया करता था, क्योंकि मैंने अक्सर डर को सकारात्मक रूप से आगे रख कर उससे जीत हासिल की है। अब आप सोच रहे होंगे कि मैं क्या बकवास कर रहा हूँ। सच कहूँ, आज मैं कोई बकवास नहीं कर रहा। जब छोटा था, स्कूल में परीक्षा में फेल होने से डरता था, इसीलिए थोड़ी और मेहनत करता था। उस मेहनत के कारण ही मैंने सफलता के कई मुकाम हासिल किए हैं। और मैं डर को कभी बुरा नहीं मानता था, न ही किसी भी बुरी आदत को। क्योंकि अगर बुराई नहीं होगी अच्छाई का भान कैसे होगा। अगर अंधेरा नहीं होगा तो उजाले का महत्व कैसे पता चलेगा? बस मेरी इसी सोच ने अक्सर मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित किया है।        आज के दौर में जब सभी देश एक वैश्विक महामारी से लड़ रहे हैं और अपने नागरिकों को इस बीमारी कोरोना वायरस से बचने को बोल रहे हैं तो मुझे लगा कि मैं तो शायद इस से लड़ना पहले से ही जानता हूँ, क्योंकि अब तक वही तो करता आ रहा हूँ। और वो उपाय है - डर ।      क्योंकि इस बार डर को सकारात्मक रूप से लेते हुए अगर हमने

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