हर आशिक लिखता नहीं...

        दोस्तों जब मैं कॉलेज के फर्स्ट इयर में था, तब मैंने लेखन ले क्षेत्र में कदम ही न रखा था... साल २००७ की शुरुआत में या २००६ के अंत से मैंने लिखना शुरू किया होगा... और २००७ के मध्य तक मैं अपनी क्लास में मशहूर हो गया था... के कारण तो बस मेरा लेखन था और दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण कारण था मेरा लेखन का विषय. उस वक्त मैं अधिकांशतः प्यार से सम्बंधित लेख, कविता, शायरी वगैरह लिखता था. इसी कारण लोगों ने ये सोचना शुरू कर दिया कि महेश जरूर किसी से प्यार करता है तभी वो बस प्यार के बारे में ही लिखता है... और ये बात सुन कर मुझे हँसी आती थी. क्योंकि ये लेखन की कला मुझे भगवान की ओर से उपहार के रूप में मिली है और मुझे ही नहीं मेरे दोनों बड़े भाइयों को ये कला प्राप्त है. 
       और तब मैंने उनका ये भ्रम तोड़ने की मन में ठानी और फिर एक लेख लिख डाला. और आज मैं अपनी लेखों वाली नोट बुक से वही लेख आपके समक्ष प्रस्तुत करने आया हूँ. तो चलिए शुरू करता हूँ अपना लेख - 

      जैसा कि मैंने आपको बताया कि कुछ लोग ये सोचते हैं - "जो लोग 'प्यार' से सम्बंधित लेख, कवितायें या शायरियाँ लिखते हैं, वे भी किसी से मुहब्बत करते हैं या कभी न कभी उन्होंने भी किसी न किसी से प्यार जरूर किया होगा तभी तो इस बारे में इतना सोच पाते हैं". और हाँ ये विचार ज्यादातर किशोरों के मन में ही अक्सर आते हैं. पर मेरा मानना है कि ऐसा बिलकुल ही नहीं है, मेरा मतलब ये नहीं कि जो लोग प्यार - मुहब्बत से सम्बंधित लेख लिखते हैं वो किसी से भी प्यार नहीं करते, पर सभी एक से नहीं होते. ये तो बस लिखने वाले की सोच पर निर्भर करता है कि वह क्या महसूस कर रहा है, वह क्या लिखना चाहता है और उसने अपने आसपास क्या देखा जिस पर वो लिखना चाहता है. 
      हर व्यक्ति को उसके आसपास का वातावरण बहुत प्रभावित करता है. कभी - कभी हम (लेखक या कवि) किसी व्यक्ति से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि उनकी बातें या वे जो महसूस करते हैं उसी को स्वयं महसूस करके, अपने तथा उनके विचारों को अपनी कहानियों, कविताओं तथा लेखों में व्यक्त करते हैं. और हर लिखने वाले की दूरदृष्टि इतनी अच्छी होती है कि वे वह बात भी सोच लेते हैं जो आमतौर पर हर कोई नहीं सोच पाता. हम, लिखने वाले, तो किसी के भी विचारों, जिनसे हम अच्छी तरह वाकिफ हैं, को भी अपने लेखों, कविताओं में शामिल कर सकते हैं. कभी कभी हम किसी आशिक के दिल के हाल को ही बयान कर देते हैं तो कभी किसी निर्जीव वस्तु के दिल का हाल भी बता सकते हैं और अगर मन में कुछ न आया तो किसी alien (परगृह वासी)  की व्याख्या तक बखूबी कर सकते हैं जिसे हमने तक सपने में तक न देखा हो, ऐसी दुनिया की कल्पना कर सकते हैं जहां सिर्फ प्यार हो, खुशियाँ हो.. ऐसी दुनिया जिस पर आज के वैज्ञानिक जा कर बसने की सिर्फ परिकल्पना कर सकते हैं. पर हम लेखक / कवि लोग ऐसी दुनिया में जब चाहे कदम रख सकते हैं भले इंसान सच में वहाँ हजारों सालों बाद ही या शायद कभी भी कदम न रखे. 
और मेरी ये बात इन पंक्तियों से सार्थक होता है - 

जहां न पहुँचे रवि,
वहाँ पहुँचे कवि...

       बस इसी कारण, एक लेखक या कवि किसी भी विषय पर जब चाहे लिख सकता है, चाहे वो विषय "प्यार" ही क्यों न हो ? और ये सब लिखने के लिए उसे प्यार करना जरूरी भी नहीं होता. वैसे मेरी माने तो कोई भी किसी भी विषय पर लिख सकता है, जैसे मैंने लिखने की शुरुआत की.
      अगर आपको भी लगता है कि प्यार को describe करने के लिए प्यार करना जरूरी है तो ये विचार अपने मन से निकाल ही दें तो बेहतर होगा, क्योंकि हर प्यार करने वाला लेखक, कवि या शायर नहीं होता.

      अब समझता हूँ कि शायद आपको मेरी बात समझ में आ ही गई होगी और आप इससे सहमत भी होंगे. और यदि कोई बात, फिर भी समझ में न आये, तो मैं हूँ न ... हर दम आपके ही लिए...

आपका 
महेश बारमाटे



Comments

  1. @हर प्यार करने वाला लेखक, कवि या शायर नहीं होता.

    पर हर लेखक, कवि या शायर प्यार करने वाले होते है.

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