ख़ुशी की बात

नमस्कार दोस्तों ! 

आज मन बहुत खुश भी है और उदास भी... 
वैसे अपनी उदासी के बारे में आज कुछ भी न कहूँगा, और शायद कभी नहीं कहूँगा क्योंकि जितना मैं उसके बारे में सोचूँगा उतना ही उदासियाँ मुझे घेरते जाएँगी...
तो चलो आज ख़ुशी की बात ही हो जाए...

ख़ुशी की बात ये है कि आज मैंने ज़िन्दगी में पहली बार कोई नाटक (play) देखा, देख के मन बहुत प्रसन्न हुआ. आज हमारे शहर जबलपुर में एक नाट्य मंच की ओर से एक नाटक "सवाल और स्वप्न" का मंचन किया गया. और ख़ुशी इस बात की हुई कि सारे कलाकार युवा थे तथा उस नाटक का निर्देशक भी एक २४ - २५ साल के नवयुवक "संदीप जी" ने किया है. थोड़ी छानबीन करने के बाद पता चला कि वे नाट्य कला के साथ - साथ लेखन में भी रूचि रखते हैं, पर समयाभाव के कारण हमारी ज्यादा बात ही न हो सकी, पर इतना जरूर विश्वास है मुझे कि हम फिर मिलेंगे और इस विषय पर लम्बी चर्चा भी करेंगे. अब बात की जाए नाटक की पृष्ठभूमि की, तो यह नाटक पारिवारिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया है और इसे श्री कृष्ण बलदेव वैद जी ने लिखा है... इस नाटक के कुछ अंश आप यहाँ भी पढ़ सकते हैं.. -


मुझे ख़ुशी इस बात की ज्यादा है कि इस नाटक के निर्देशन से लेकर मंचन तक का सारा काम केवल युवा कलाकारों के हाथ ही था. और इस नाटक को देखने आये लोगों में युवा वर्ग का ज्यादा योगदान रहा. 
चूंकि मुझे ख़ुशी इस बात की इसीलिए है क्योंकि आज भारत का अधिकांश युवा वर्ग या तो साहित्य की ओर कोई ध्यान नहीं देता और या तो केवल अंग्रेजी साहित्य की ओर ही ध्यान देता है. ऐसा मेरा मानना है. पर अब मेरी ये मान्यता कुछ हद तक झुठलाती सी नज़र आ रही है...

चलो अब एक और खुशखबर और सुना देता हूँ. 

वो यह कि मेरे ब्लॉग "माही" की अगली पोस्ट पचासवीं पोस्ट होगी. 
यह ब्लॉग मैंने २७ दिसंबर २००९ को लिखना शुरू किया था 
जिसमे अब तक मुझे 176 कमेंट्स और 13 + 9(networkedblogs.com के द्वारा) फौलोवर मिले हैं...

चूंकि ये कोई बड़ी उपलब्धि न हो किसी के लिए पर मेरे जैसे नए ब्लॉगर के लिए ये उपलब्धि से कम नहीं...
अब तलाश रहा हूँ एक सही समय अपनी पचासवीं पोस्ट के लिए, जिसे मैं अपने ब्लॉग "माही" के नए रूप के साथ पेश करूँगा...
मेरे सहयोग व आप सभी के प्रोत्साहन के लिए मैं तहे - दिल से आप सभी को शुक्रिया कहना चाहता हूँ.

और अंत में बस अब तो यही कहना चाहूँगा मैं कि 


ले चल खुले आसमान की ओर मुझे ऐ माही 
के फलक पे नाम अपना लिखना है...
ज़मीन पे रह कर खूब निहारा है कल तक आसमान को हमने,
अब तो बस फलक पे खुद को चाँद की तरह देखना है... 

धन्यवाद

महेश बारमाटे "माही"
१० जुलाई २०११ 

Comments

  1. मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.

    दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?

    मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.

    मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो

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