बेलन, बीवी और दर्द (व्यंग्य)

शीर्षक पढ़ के क्या सोच में पड़ गए जनाब..? कहीं आपको आपकी ज़िंदगी का कोई किस्सा तो याद नहीं आ गया? अजी मैं उसी बेलन का ज़िक्र कर रहा हूँ जिसके बगैर एक आदर्श भारतीय घर का किचन अधूरा होता है..। यूँ तो हम सभी जानते हैं कि बेलन का महत्व हम सब की ज़िन्दगी में क्या होता है और क्यों..? यार! बेलन न हो तो रोटी बनाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है, बेलन न हो तो आपके फेवरेट पराठे और गरमागरम पूड़ियाँ कैसे बनेंगी? सोचो कि अगर बेलन का आविष्कार नहीं हुआ होता तो आज हम तरह तरह की डिश का लुत्फ कैसे उठाते..? न रोटियाँ सही आकार व मोटाई में मिलती, न पराठे व पूड़ियाँ और न ही खाने के साथ हमेशा साथ देने वाले तरह - तरह के पापड़ का हम लुत्फ़ उठा पाते.. मैं तो हमेशा से ही इन छोटी - छोटी चीजों के आविष्कारकों  को नमन करता रहता हूँ कि आखिर उनके ही कारण मेरा जीवन आसान बन पाया है।

ये तो रहा बेलन का पहला पहलू.. अब बात रही एक अन्य पहलू की.. हालांकि बेलन किसी सिक्के की तरह गोल नहीं होता कि इसका कोई दूसरा पहलू हो, पर व्यहवारिकता में तो इसके एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीन पहलू होते हैं, जो मैंने अभी अभी जाने हैं। 

तो मैं बात कर रहा था बेलन के दूसरे पहलू के बारे में.. और वो अक्सर हमें हास्य के कार्टून में जरूर देखने को मिलता है जब कोई छोटी सी भी गलती हो, घर का कोई सामान टूट गया हो तो मम्मी किचन से बस बेलन लेकर आते दिखती है। भाई कार्टूनिस्ट ने तो मम्मी (और बीवियों) के लिए एक सशक्त अस्त्र - ओ - शस्त्र के रूप में बेलन को एक नई पहचान दी है। और इसके लिए बेलन भी यदि कोई सजीव प्राणी होता तो जरूर मेरी तरह अपने आविष्कारक को प्रतिदिन धन्यवाद जरूर करता होता। हालांकि शायद ही किसी मम्मी ने अपने बच्चों को बेलन से दण्ड दिया होगा, पर मुझे लगता है कि किसी न किसी बीवी जी ने अपने शौहर जी को इसका स्वाद जरूर चखाया होगा। ऐसे पतियों से करबद्ध माफी चाहूंगा क्योंकि मैंने जाने अनजाने में शायद मैंने उनकी किसी दुखती रग पे हाथ रख दी दिया होगा।

दुखती रग से याद आया, इस बेलन महाराज के तीसरे और ताजे ताजे पहलू के बारे में। ताजा इसीलिए क्योंकि ये पहलू अभी अभी मेरे समक्ष आया है। और इसी पहलू ने मुझे ये व्यंग्य लिखने के लिए प्रेरित भी कर दिया है। तो वाकया ये है कि कल सुबह से ही मेरी पीठ की एक नस ने मुझसे रूठ के जरा खिंच सी गई.. सो आज तक वो रूठी हुई है। 

दर्द के मारे हाल बेहाल, 

न नींद है और न करार..।

बस फिर क्या था, मेरी प्रिय पत्नी जी को भी मेरा दर्द सहन नहीं हुआ, और इस दर्द से मुझे निजात दिलाने के लिए तरह - तरह के दर्द निवारको के घरेलू उपायों की खोजबीन जारी हो गई। और इसी खोजबीन के चलते हमारे पड़ौस वाली भाभी जी ने भी एक नुस्खा हमारी मैडम जी को सुझा दिया, और बोल दिया कि पीठ सीधी कर के बेलन से बेल दो, नस जी जो रूठी हुई हैं मान के सही जगह पे आ जायेगी, फिर न तो दर्द होगा और न ही कोई पीड़ा.. बस फिर क्या था, पत्नी जी ने उठाया बेलन और चला दिया हमारी दुखती रग में.. और आप यकीन मान ही लीजिए कि दुखती नस जी कुछ देर के लिए तो मान गईं और मुझे दर्द से रिश्ता तोड़ना पड़ा। हालांकि ये दर्द इतनी जल्दी मुझसे अपना रिश्ता तोड़ेगा नहीं पर उम्मीद है कि कुछ न कुछ तो जरूर होगा और पत्नी जी की मेहनत रंग लाएगी। और इस तरह मेरे दर्द का अंत हो जाएगा। आखिर बेलन के तीसरे पहलू को भी तो अपना अस्तित्व कायम करना होगा न। मेहनत तो बेलन जी ने भी किया है।

खैर! ये दर्द तो ठीक हो ही रह है, आप जाइये और अपनी पत्नी जी के हाथों से घी चुपड़ी रोटियां खाइये। और सीमित रहें बेलन के पहले पहलू तक.. इसी आशा में..

आपका

महेश बारमाटे "माही"

Comments

  1. वाह दुखयी रग पर बेलन , और दर्द से रिश्ता खत्म । बहुत खूब महेश । काश की राजनेताओ के पास भी कोई बेलन इस तरह का होता जो मेरी रामभरोसे जनता की दुखती नस पर ठीक बैठता

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    1. सर जी बस सीख रहा हूँ.. आपका आशीर्वाद बना रहे.. 🙏🙏

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