तुम केपीओ हो, केपीओ.. (व्यंग्य)

सदियों से इस देश में निचले वर्ग का शोषण हो रहा है, और अब तो ये रिवाज हो गया है। पहले जाति के नाम पर शोषण होता था, आज गरीबी और पद के नाम पर होता है। अमीरों के द्वारा गरीबों का शोषण तो पहले भी होता ही था और अब भी होता ही है, पर जाने कब से प्रथा सी बन गई है कि आप अगर निचले पद पर हों तो आपका शोषण ऊँचे पद वाले व्यक्ति विशेष जरूर करेंगे। और खास तौर पे हमारे सरकारी विभागों के कार्यालयों में।

बात इतनी सी है कि छोटा कर्मचारी अगर शिकायत करेगा तो उसकी सुनेगा कौन? और अगर वह कर्मचारी बाह्य स्त्रोत मेरा मतलब है कि आउट सोर्स से हो तो वो तो कुछ कर ही नहीं सकता, क्योंकि नौकरी जाने का डर तो सबको होता है न। 

बाह्य स्त्रोत की बात से याद आया कि आज कल जाने कहाँ से सरकारी विभागों ने फंडा बना रखा है कि कर्मचारियों की कमी को आउट सोर्स के माध्यम से ही भरा जावे। वैसे आउट सोर्स व्यवस्था के बहुत सारे फायदे हैं, कुछ एक बता ही देता हूँ।

 पहला तो ये, कि नियमित कर्मचारी को जहाँ मोटी मोटी रकम सैलरी के तौर पे दी जाती थी, वहीं आज आउटसोर्सिंग के माध्यम से 5 गुना कम कीमत में नवीन बेरोजगार युवा पीढ़ी को रोजगार मिल जाता है। 

दूसरा ये कि नियमित कर्मचारी तो काम कर कर के हो गया बुड्ढा तो काम करने की एफिशिएंसी भी कम हो गई, अब कम संसाधनों में ज्यादा काम तो नवीन बेरोजगार युवा पीढ़ी ही कर सकती है न ? 

तीसरा ये कि जहाँ किसी नियमित कर्मचारी को कार्य न करने, हड़ताल करने या कार्य करने में अक्षम होने पर दुनिया भर की लिखा पढ़ी करनी पड़ती थी, और साथ में पेंशन नाम का आर्थिक बोझ झेलना पड़ता था, वहीं इन आउटसोर्स कर्मचारियों को ऐसी परिस्थितियों में ये कह के निकाल दिया जाता है, कल से काम पे मत आना।

और भी कई फायदे हैं, जो आप जानते ही होंगे अगर मेरे जैसे किसी सरकारी दफ्तर में विराजमान होंगे।

सोचो! कितना फायदेमंद है न, इन आउटसोर्स कर्मचारियों से जी चाहा काम लेना? इनसे हद से ज्यादा काम लिया जा सकता है, इन्हें जैसा चाहे वैसा काम लिया जा सकता है, और अगर कभी पत्नी जी से साहब जी खरी खोटी सुन के आये तो वो सारा गुस्सा भी इन पर ही निकाला जा सकता है। ये बेचारे उफ्फ भी नहीं कर सकते। क्योंकि इनको तो कोई अधिकार ही नहीं है, अपनी बात कहने का, अपने मन से काम करने का।

भले ये आउट सोर्स के तुच्छ कर्मचारी 7-8 हजार में किसी पचास हजार के कर्मचारी का काम कर रहे हों। या फिर पूरे कार्यालय का अधिभार इनके ही कोमल कंधों पर ही क्यों न हो।

केपीओ बोले तो "की पंचिंग ऑपरेटर" मतलब हमारे ऑफिस में आउट सोर्स के माध्यम से पदस्थ एक छोटा सा कंप्यूटर ऑपरेटर। जिसे एक अधिकारी के नजर से देखें तो कुछ आता ही नहीं है, पर जनाब! आप चूक कर सकते हैं क्योंकि मैंने अक्सर अखबारों में सुना है कि फलां फलां केपीओ ने साहब की आई डी का दुरुपयोग कर के जनता के पैसे ले कर फरार हो गया। हाँ! वही केपीओ जिसको साहब ने ही दया कर के अपने रिस्क पे अपने आफिस में नौकरी पर लगाया और वही धोखा दे गया।

ऐसे में किसी केपीओ प्रजाति के आउट सोर्स कर्मचारी का शोषण न किया जाये तो भला क्या किया जाए? वो साहब से शायद थोड़ा ज्यादा जानता है, और साहब की कंप्यूटर आई डी का सदुपयोग संग दुरुपयोग किस प्रकार किया जा सकता है उसे भली भांति पता होता है। ऐसे में यदि साहब ऐसे केपीओ महोदय को अगर डाँट डपट के न रखें तो चींटी के पर निकल आएंगे।

अभी कुछ दिन पहले उड़ती हुई खबर मेरे पास आई, कि एक नवीनतम पदाधिकारी ने जब अपने अधीनस्थ किसी कार्यालय सहायक को कोई जानकारी पूछने के लिए अपने केबिन में बुलाया तो उस कर्मचारी के स्थान पर केपीओ महोदय चले गए, आखिर जाते भी क्यों नहीं, क्योंकि कार्यालय सहायक जी तो बस मदिरापान के लिए आफिस आते हैं और सारा कार्यभार बस के पी ओ को ही संभालना होता है, फिर भी नवीनतम पदाधिकारी महोदय ने श्रीमान केपीओ महोदय को ये कह के दुत्कार दिया कि तुम केपीओ हो केपीओ, तुम मेरे सामने कैसे आये? 

साहब जी ने भी सही बोला उस आउटसोर्स कर्मचारी से क्योंकि उसका क्या हक कि वो इतने बड़े अधिकारी के सामने बेवजह बिना बुलाये उपस्थित हो जाये। पर किसी के बोलने के ढंग का क्या भरोसा, कब किसका दिल दुख जाए?

ऐसे में आउट सोर्स कर्मचारी जो बस शोषण के लिए ही इस दफ्तर में लगा हुआ है उसे बुरा नहीं मानना चाहिए, क्योंकि भाई! ये तो पीढ़ियों से होता आ रहा है, अपने से दुर्बल, निर्धन, या निचले पद के व्यक्ति शोषण होता है और होता ही रहेगा। आखिर पुरानी मान्यताओं और रीति रिवाजों को चलाना भी तो है और तुम केपीओ हो, तुम को सहना ही होगा।


- महेश बारमाटे "माही"

24/6/18

1:11 am

Comments

  1. बहुत खूब पर आउटसोर्स वालो का शोषण कब खत्म होगा

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    1. भाई बोला न.. तुम केपीओ हो केपीओ.. 😋😋

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