डर की सकारात्मकता

 
    एक वैश्विक महामारी (कोविड 19 या कोरोना वायरस) के दौर में अकेले बैठे - बैठे आज बस यूं ही याद आया कि कभी मैं डर की वकालत किया करता था, क्योंकि मैंने अक्सर डर को सकारात्मक रूप से आगे रख कर उससे जीत हासिल की है। अब आप सोच रहे होंगे कि मैं क्या बकवास कर रहा हूँ। सच कहूँ, आज मैं कोई बकवास नहीं कर रहा। जब छोटा था, स्कूल में परीक्षा में फेल होने से डरता था, इसीलिए थोड़ी और मेहनत करता था। उस मेहनत के कारण ही मैंने सफलता के कई मुकाम हासिल किए हैं। और मैं डर को कभी बुरा नहीं मानता था, न ही किसी भी बुरी आदत को। क्योंकि अगर बुराई नहीं होगी अच्छाई का भान कैसे होगा। अगर अंधेरा नहीं होगा तो उजाले का महत्व कैसे पता चलेगा? बस मेरी इसी सोच ने अक्सर मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित किया है। 
      आज के दौर में जब सभी देश एक वैश्विक महामारी से लड़ रहे हैं और अपने नागरिकों को इस बीमारी कोरोना वायरस से बचने को बोल रहे हैं तो मुझे लगा कि मैं तो शायद इस से लड़ना पहले से ही जानता हूँ, क्योंकि अब तक वही तो करता आ रहा हूँ। और वो उपाय है - डर
     क्योंकि इस बार डर को सकारात्मक रूप से लेते हुए अगर हमने थोड़ी सावधानी बरती तो हम इस बीमारी से स्वयं को बचा पाएंगे। और साथ में अपने प्रियजनों को भी बचा पाएंगे। क्योंकि ये तो आप भी जानते हैं कि ये बीमारी एक प्रकार का संक्रमण है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुंचता है और धीरे धीरे परिवार, मोहल्ला, समाज, जिला, प्रदेश, और फिर देश को संक्रमित कर सकता है। इस भयंकर बीमारी से डरने से अच्छा कोई उपाय और हो ही नहीं सकता। अगर आप इससे सकारात्मक रूप से डर गए और फिर "डर" का सकारात्मक उपयोग करते हुए हम इससे सुरक्षा के उपाय खोजने लगेंगे और कुछ अच्छी आदतों का उपयोग करने लगेंगे। जिससे हम अपने परिवार, दोस्त - यार, समाज, और देश को बचा सकते हैं।  
और एक बात और, कोरोना ने हमें सीमित संसाधनों में जीना, सीधा सादा जीवन जीना, अपने परिवार को समय देना, घर के बहुत से उपयोगी कार्य जिन्हें पहले घर की गृहिणियाँ अकेले ही करती थीं और गलती करने पर आपकी डांट भी खाती थी, उन कार्यों की महत्ता को जानने का मौका भी दिया है। एक तरफ जहाँ कोरोना ने हमें दीन-दुनिया से दूर कर दिया, वहीं दूसरी तरफ इसने हमें अपने आपसी रिश्ते निभाना, और सामाजिक दायित्व निभाना भी सिखा दिया। कोरोना ने दिखावे की दुनिया से दूर कर अपनी संस्कृति में वापस लौटने का मौका दिया है। अतः इस लॉक डाउन को सकारात्मक रूप से लेते हुए अपने घरों में रहें। और वो करने का सोचें जो आपने कभी घर पर रह कर करने का सोचा होगा। शायद कभी अपने मन की डिश बनाने का मन होगा आपका, शायद कभी अपने माता-पिता के पैर दबाने का सोचा होगा, शायद सोचा होगा कि अपने बच्चों के साथ कुछ पल बिता सकूँ। कोई किताब पढ़ने का या पहली किताब लिखने का सोचा होगा या फिर बच्चों से कंप्यूटर पर कोई नई विधा सीखने का मन किया होगा आपका, जो रोजमर्रा की भाग दौड़ में बस सपना बन के रह गया होगा। आज कोरोना ने आपको समय दिया है, अपने सपनों को जीने का।
     अब आप में से ऐसे भी लोग होंगे, जो अकेले भी होंगे, और हर वो चीज करने के लिए स्वतंत्र भी होंगे जिसके आपने सपने देखें होंगे पर इस लॉक डाउन के चक्कर में आपके पास कोई विकल्प ही न हो तो दोस्त एक काम तब भी कर सकते हैं कोई अच्छी किताब गूगल बाबा से सर्च करें और पढ़ना शुरू करें। क्योंकि किताबें ही वो दोस्त होती हैं जो कभी शिकायत नहीं करतीं, क्या पता किताबें पढ़ना आपकी एक सबसे अच्छी आदत और सब से अच्छा फैसला साबित हो जाये।
इसीलिए बस इतनी सी गुजारिश है, कि कोरोना से डरें और घर पर वो करें जिसके लिए आपने सपने देखे होंगे। मगर सबसे अलग और अकेले ही करें। 
और जब ये लॉक डाउन खत्म होए तो जब भी आप किसी शासकीय कर्मचारी से मिलें तो उन्हें धन्यवाद जरूर दें क्योंकि ऐसी विषम परिस्थिति में भी वे आपकी सुरक्षा, आपके स्वास्थ्य, आपके सुख सुविधा के लिए दृढ़ता से डटे हुए हैं। फिर चाहे वो कोई पुलिस वाला हो, स्वास्थ्य विभाग या नगर पालिका कर्मचारी हो या बिजली विभाग का कर्मचारी, या आईटी अथवा टेलीकॉम क्षेत्र का कर्मचारी हो। आज जिस तरह सीमा पर आर्मी के जवान हमारी रक्षा कर रहे हैं, उसी तरह ये शासकीय कर्मचारी भी आपके लिए अपने परिवारों को छोड़ इस देश की सेवा कर रहे हैं। क्योंकि इस देश को शासकीय विभाग के कर्मचारी ही चला रहे हैं।

आपका 
महेश बारमाटे "माही"

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