मन
ये मन भी कितना पागल है, हमेशा किसी न किसी सोच में डूबा रहता है और तो और हमेशा समय और परिस्थिति के विपरीत ही काम करता है. कभी ये अच्छे खासे ग़मगीन माहौल में भी किसी हँसी ठिठोली वाली बात याद करता है, तो कभी ख़ुशी के माहौल में उदास हो जाता है.

"अरे! ये क्या हो गया,
मैं तो अपनी राह से ही भटक गया,
बात कर रहा था 'मन' की
और
प्यार पर आकर अटक गया."
आखिर ये सब क्या है? ये तो एक छोटा से खेल है इस मन का. ये मन जो कही भी स्थिर नहीं रहता, इसका एक उदाहरण मैं हूँ. मैंने तो बातों-बातों में ही आपको बता दिया.
खैर! अब बहुत हुआ, अब बस करता हूँ, क्योंकि मेरा मन ऊब गया है, मन के बारे में लिखते-लिखते. क्योंकि ये किसी की नहीं मानता तो मेरी क्या सुनेगा, ये मन, मेरा मन.
Mahesh Barmate
१५ फरवरी २००७
१२:५७ रात्रि
truly said maahi ek paribhaasha main pyaar ko khayd karna mushkil hain its un explainable well said :)
ReplyDeleteBahut sunder ...... man hi to hai...
ReplyDeleteमन जो कही भी स्थिर नहीं रहता...मन तो होता ही चंचल है.
ReplyDeletedhanyawad monika, sana or sameer ji
ReplyDeleteno words are enough to describe your talent :)
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