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Showing posts from April, 2011

मेरी बात

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दोस्तों और हिंदी ब्लॉग जगत के गणमान्य ब्लोग्गर्स... आज कुछ भी लिखने से पहले मैं आप सभी को प्रणाम करता हूँ और आप सबसे ये कहना चाहता हूँ कि अगर मेरे इस लेख में मैंने कुछ भी ऐसा लिखा हो जिससे आपको दुःख हो तो कृपया मुझे क्षमा करें. दोस्तों, मैंने हमेशा से चाहा है कि मैं यहाँ जो भी कहूं विनम्रता पूर्वक ही कहूं पर फिर भी कभी कभी गलती हो ही जाती है... आखिर मैं भी उस ईश्वर का बनाया हुआ एक आम इंसानी बच्चा हूँ जिसके एक कारण मैं, आप और ये सारी कायनात आज तक अस्तित्व में हैं. जैसा कि आप सभी जानते हैं कि इन्सान गलतियों का पुतला है अगर वो गलती नहीं करेगा तो और कौन करेगा ? और मैं तो अब भी बच्चा ही हूँ और हमेशा बच्चा ही रहना पसंद करता हूँ. कल मैंने एक लेख लिखा था " सुझाव : Blogging के बेहतर कल के लिए " और इस बार मुझे आशा से भी ज्यादा कमेंट्स मिले ये जान कर मुझे ख़ुशी और दुःख दोनों हुआ... ख़ुशी इस बात की कि ब्लॉग जगत के कुछ बड़े दिग्गजों ने मेरा लेख पढ़ा और गम इस बात का कि उनमे से कुछ ने मेरे सुझावों पर ध्यान न देते हुए मेरे लेख के एक शब्द को कुछ इस तरह से पकड़ लिया कि मैं जैसे कुछ जानता ह...

सुझाव : Blogging के बेहतर कल के लिए

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आज नवोदित ब्लोगर्स की क्या स्तिथि है इस नवोदित, विकास शील ब्लॉग जगत में ? मुझे ब्लॉग जगत में आये ज्यादा वक्त न गुजरा होगा, और मैं भी इसके रंग में रंगने लगा. अपनी पोस्ट को बढ़ावा देने मैंने भी कई एग्रीगेटर का सहारा लेना शुरू कर दिया. आखिर हर नया ब्लौगर यही तो चाहता है कि उसकी पोस्ट को सब पढ़ें और वो मशहूर हो जाए. और इसी कारण मैंने भी बहुत प्रयत्न किये ताकि मैं भी लोगों की नज़रों में आ जाऊँ... और देखो मैं अपने उद्देश्य में थोडा ही सही सफल तो हो ही रहा हूँ. पर इस ब्लाग जगत में इतनी जल्दी नाम पा लेना सबके बस की बात नहीं. मैंने भी करीब एक साल से ज्यादा का लम्बा इंतजार किया.  और आज न जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि मैंने तो अपने मुकाम की पहली सीढ़ी तो पा ली पर क्या और भी लोगों को मेरी ही तरह सफलता मिली ? ये इंसानी फितरत है कि अगर कोई नया काम वो करने जाए तो सबसे पहली उसकी मनोकमाना यही रहती है कि अगले दिन ही उसे अपने उस काम का सही फल और वह भी बड़ी अच्छी तादाद में मिले. इसी बीच मैंने अपने २३वें जन्मदिन पे एक फिल्म देखी F.A.L.T.U. फिल्म की कहानी बहुत अच्छी लगी मुझे... Don't worry मैं...

हर आशिक लिखता नहीं...

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        दोस्तों जब मैं कॉलेज के फर्स्ट इयर में था, तब मैंने लेखन ले क्षेत्र में कदम ही न रखा था... साल २००७ की शुरुआत में या २००६ के अंत से मैंने लिखना शुरू किया होगा... और २००७ के मध्य तक मैं अपनी क्लास में मशहूर हो गया था... के कारण तो बस मेरा लेखन था और दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण कारण था मेरा लेखन का विषय. उस वक्त मैं अधिकांशतः प्यार से सम्बंधित लेख, कविता, शायरी वगैरह लिखता था. इसी कारण लोगों ने ये सोचना शुरू कर दिया कि महेश जरूर किसी से प्यार करता है तभी वो बस प्यार के बारे में ही लिखता है... और ये बात सुन कर मुझे हँसी आती थी. क्योंकि ये लेखन की कला मुझे भगवान की ओर से उपहार के रूप में मिली है और मुझे ही नहीं मेरे दोनों बड़े भाइयों को ये कला प्राप्त है.         और तब मैंने उनका ये भ्रम तोड़ने की मन में ठानी और फिर एक लेख लिख डाला. और आज मैं अपनी लेखों वाली नोट बुक से वही लेख आपके समक्ष प्रस्तुत करने आया हूँ. तो चलिए शुरू करता हूँ अपना लेख -        जैसा कि मैंने आपको बताया कि कुछ लोग ये सोचते हैं - "ज...

पञ्च-शील : गौतम बुद्ध की शिक्षाएं

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नमस्कार दोस्तों ! लो आज फिर मैं आ गया. देरी के लिए क्षमा करें क्योंकि मैं किसी काम से बहार गया हुआ था. जैसा कि मैंने अपने पिछले लेख में कहा था कि मैं आपको बौद्ध धर्म के पञ्च-शील की जानकारी दूँगा, तो लो मैं आज वही ले कर आया हूँ. यूँ तो लोग बौद्ध धर्म के इन तीन प्रमुख मन्त्रों को जानते ही हैं -  बुद्धम शरणम् गच्छामि. धम्मम शरणम् गच्छामि. संघम शरणम् गच्छामि. और शायद इनका मतलब भी जानते हैं फिर भी बता देता हूँ -  मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ. मैं धर्म की शरण में जाता हूँ,  मैं संघ की शरण में जाता हूँ. इन तीन प्रमुख मंत्र शरण - शील कहलाते हैं और इनके अलावा गौतम बुद्ध ने जब अपनी शिक्षाएं सबको देनी चाही तब उन्होंने पञ्च - शील का निर्माण किया. ये वो पांच वचन हैं जो लगभग हर बौद्ध धर्म का अनुयायी जानता है. और इन पञ्च - शील का उच्चारण हर धार्मिक अनुष्ठान के वक्त किया जाता है. ये पञ्च - शील हैं  - पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी - मैं जीव हत्या से विरत (दूर) रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ. अदिन्नादाना  वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी  - जो...

क्या आज ५५ साल बाद भी भारत में जातिवाद ख़त्म हुआ है ?

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२४ मई १९५६, ये वो ऐतिहासिक दिन था जिस दिन डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म को सारे भारत के सामने अपनाया. डॉ. भीमराव अम्बेडकर इनका नाम तो सबने सुना होगा. ये वही शख्स है जिसने हमारे देश के संविधान को एक रूप प्रदान किया था, शायद अब आपको याद आ गया होगा. अब भी ना आया हो तो एक बात और बताना चाहूँगा कि ये वही युग पुरुष हैं जिन्होंने भारत में शूद्र कही जाने वाली "महार" जाति को इस हिन्दू समाज में रहने लायक अधिकार दिलाये. आज सारा बौद्ध समाज उनको याद करता है और उनका आभारी है. उन्होंने एक सपना देखा था कि कोई भी महार या कोई भी नीची जाती वाला व्यक्ति इस हिन्दू प्रधान देश में सिर उठा कर जीये. कहीं कोई जाति के नाम पर छुआछूत न हो. अगर गाँधी जी ने अखंड भारत का सपना देखा था तो उस सपने का एक भाग ये भी था कि भारत में न केवल हिन्दू मुस्लिम एकता हो बल्कि जातिवाद, धर्मवाद भी न हो. यही सपना डॉ. भीमराव अम्बेडकर का भी था. और इस हेतु उन्होंने जो अविस्मर्णीय कार्य किये वो अद्वितीय हैं. पर क्या आज ५५ साल बाद तक भारत में जातिवाद ख़त्म हुआ है ? शायद आपका जवाब  हाँ  होगा. पर मेरा जवाब ...

F.A.L.T.U.

नमस्कार दोस्तों ! आज फिर मेरा मन कुछ लिखने को कह रहा है. आखिर आज मैं अंतरजाल (इन्टरनेट) पे अपना समय बिता ही रहा हूँ जैसा कि अक्सर यूँही फालतू बैठ के बिताता हूँ. फालतू से याद आया, १२ अप्रेल २०११, को मेरा जन्मदिन था. तो मैंने सोचा कि क्यों न इस दिन को यादगार बनाया जाए, और ऐसा सोचना जायज़ भी है, तो मैंने अपने कुछ दोस्तों के संग सुबह-सुबह निकल पड़ा कोई मूवी (फिल्म) देखने. हम लोग सिनेमा पहुंचे तो सब ने सोचा क्यों न "फालतू" (F.A.L.T.U.) फिल्म ही देख ली जाए. बस फिर क्या था हमने टिकेट ले ली और फिल्म देखने लगे. जैसा कि आप शायद जानते हैं कि ये फिल्म उन छात्रों के जीवन पर आधारित है जिनके कभी अच्छे marks आये ही नहीं. इस फिल्म में कुछ इसी तरह के छात्र मिल के एक फर्जी कॉलेज खोल लेते हैं जहाँ वो हर चीज सिखाई जाती है जो वो लोग सीखना चाहते हैं. कॉलेज में कोई शिक्षक नहीं था, पर जब उनको शिक्षक की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने उन शिक्षकों की शिक्षा को ही अपने कॉलेज में ले आये और फिर क्या था ? उस कॉलेज के सारे के सारे छात्रों (जो कि दुनिया की नज़र में बस useless या कबाड़ थे) में से हुनर के हीरों ...

बदलाव ही ज़िन्दगी है...

        ज़िन्दगी में कभी - कभी हर किसी को अपने स्वाभाव को बदलना पड़ता है. वैसे.., इन्सान का स्वाभाव change हो जाना आम बात है और इसके कई कारण हो सकते हैं. जब किसी का स्वाभाव स्वतः ही change हो जाये, जैसे कि अचानक मिली सफलता या विफलता के कारण. कभी कभी समय के साथ हमारा स्वाभाव भी यूँही बदल जाता है हम इस अचानक आये परिवर्तन को काबू में नहीं रख पाते, शुरू में कोशिशें जरूर करते हैं मगर, किस्मत के आगे किसकी चलती है ? क्योंकि " परिवर्तन ही तो प्रकृति का नियम है ".          ये तो रही बात हमारे स्वाभाव के स्वतः परिवर्तन की, पर अगर जब हम खुद को बदलना मतलब अपने स्वाभाव में जबरदस्ती बदलाव लाना चाहते हैं, तो हम अक्सर खुद पर ज़ुल्म करते हैं या जिसके लिए हम खुद को बदलना चाहते हैं, उन्हें ही चोट पहुँचाने लगते हैं. ये चोट शारीरिक कम मगर मानसिक ज्यादा होती है. जैसे कि अगर हमें किसी को अपनी ओर आकर्षित करना करना होता है तो अचानक ही उससे दूर रहने लगते हैं और उसे avoid करने लगते हैं. अगर जिसे हम avoid कर रहे हैं वो हमारा अच्छा मित्र हो और उसे हम अपने ...