बेवफा...
"एकता, जो कल तक आकाश के साथ अक्सर दिखाई देती थी, आज तन्हाइयों ने उसे कुछ इस तरह घेर लिया है की दोस्तों की महफ़िल में भी वो अकेली दिखाई देती है. आज वो सच में बहुत अकेली और उदास हो गयी है. कारण है - आकाश की अचानक हुई सड़क दुर्घटना में मौत... एकता और आकाश एक दुसरे को बहुत चाहते थे, एक दुसरे की खातिर जान तक देने को तैयार थे वो दोनों... उन्होंने ने भी प्यार में संग जीने मरने की कसमे खायी थी, मगर होनी को आखिर कौन टाल सकता है ? आज एकता पूरी तरह से टूट चुकी है, लगता है जैसे किसी फूलदार डाली के सारे फूल हवा के एक हल्के से झोंके ने पल भर में ही बिखेर दिए हों.
कल तक एकता को आकाश पर बहुत नाज़ था, क्योंकि एक हिन्दुस्तानी लड़की को जिस तरह के आदर्श लड़के (जीवन साथी के रूप में) जरूरत होती है, वह सब कुछ आकाश में था. न किसी तरह का ऐब और प्यार के अलावा किसी और तरह का नशा. दोनों की जोड़ी भी आदर्श जोड़ी ही लगती थी. पर ये समय........, न कभी किसी का हुआ है और न ही कभी किसी और का हो पायेगा..."
-- कुछ ऐसे ही जज़्बात बयाँ कर रहीं थी, आज अनीता की आँखे, मयूर की तरफ देख कर.
मयूर, अनीता का बेस्ट फ्रेंड और एकता की बेस्ट फ्रेंड है अनीता. तीनो की जोड़ी अक्सर कॉलेज में हर कार्य में सबसे पहले दिखाई देती थी. पर आज जब भी मयूर और अनीता, एकता की ओर देखते तो उनका मन भी एकता के दुःख में रो पड़ता. मयूर से एकता का दुःख नहीं देखा जाता था, उसे हरदम यही लगता था कि एकता की दुनिया में फिर रंग भरने चाहिए, उसे फिर हँसता गाता देखे जैसे ज़माना हो गया हो. और फिर मयूर कॉलेज के पहले ही दिन से एकता को पसंद करने लगा था, पर वो अपने प्यार का इज़हार कभी नहीं कर सका क्योंकि जब उसने तय किया था कि वह उससे अपने प्यार का इज़हार करेगा उसी दिन उसे एकता के मुंह से ही आकाश का नाम सुन लिया. ये बात उसे जब पता चला तब से उसने एकता को हरदम खुश रखने की ठानी और वो भी बिना किसी शर्त के.
आज जब एकता के पास आकाश का साथ नहीं रहा, तब भी उसने ये कभी नहीं छह की अपने प्यार का इज़हार करे क्योंकि उसका प्यार दुनिया की सोच से ऊपर था, वो नही चाहता था कि कल को कोई पीठ पीछे ये कहे कि मयूर ने मौके का फायदा उठाया या मयूर ने एकता पर दया की और उसे अपना लिया. और फिर एकता का मानसिक स्तर भी इतना कमज़ोर हो चूका था कि ऐसे वक्त उसे क्या सही क्या गलत ये भी समझ में नहीं आ रहा था. वो अपने प्यार को साबित करना चाहता था, उसके लिए प्यार को पाना ही सब कुछ नहीं था, उसके लिए प्यार का मतलब था कि चाहे किसी भी रूप में सही, मगर वो एकता के दिल में अपनी जगह बनाना चाहता था. और मयूर को तो इतना भी आत्मविश्वास न था कि अगर एकता ने उसके प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर लिया तब वह क्या करेगा ? यही सब सोच कर वह चुप रहा और एकता की ज़िन्दगी में फिर से उम्मीद जगाने की कोशिश करने लगा...
मयूर और अनीता दोनों ही चाहते थे कि एकता की ज़िन्दगी में आकाश की ही तरह फिर कोई ऐसा आये जो उसकी दुनिया को फिर खुशियों से भर दे. बस इसी इंतज़ार में करीब तीन महीने गुज़र गए.
रंजीत, जो कि न तो स्वभाव से अच्छा था और न ही उसमे कोई अच्छी आदत थी. सिगरेट, दारू इत्यादि के नशे के बगैर उसका न तो दिन गुजरता था और न ही रात शुरू होती थी. इतने ऐब के बावजूद जब रंजीत ने एकता से अपने प्यार का इज़हार किया तो न जाने क्यों एकता उसके प्यार को मन न कर सकी. इस बात को करीब एक सप्ताह गुजरने के बाद जब यह बात मयूर को कक्षा के दुसरे छात्रों से मालूम हुई तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि एक समय था जब एकता, रंजीत के नाम से भी चिढती थी. वह उसे बिलकुल भी पसंद नहीं करती थी. तो फिर आखिर कैसे उसने "हाँ" कहा ? ये बात मयूर को हरदम मन ही मन बहुत सताती थी, और इसी सवाल के जवाब की खातिर उसने सारी छान-बीन भी शुरू कर दी.
रंजीत और एकता के बीच बढती नजदीकियों ने अनीता और मयूर को एकता से दूर कर दिया. अब बस एकता और रंजीत ही एक साथ दिखाई देते थे और सारे दोस्त अलग. मयूर को एकता से दूर होने का गम न था पर रंजीत के प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार कर लेना उसे बिलकुल पसंद न आया.
आज आकाश की मौत को पूरा का पूरा एक साल गुजर गया. कॉलेज में उसकी मौत को एक साल बीतने पे पूरे कॉलेज में दो मिनट का मौन रख कर उसकी आत्मा को श्रद्धांजलि दी जा रही है. पर आज एकता कॉलेज नहीं आई और न ही रंजीत. आज दोनों रंजीत का जन्मदिन मनाने के लिए लॉन्ग ड्राइव पे गए हुए हैं. वे वहाँ खुशियाँ मना रहे हैं और यहाँ सारा कॉलेज और आकाश के परिजन आकाश को श्रद्धांजलि दे रहे हैं... इस दुःख के मौके पर सभी ने एकता को बहुत याद किया कि अगर वो होती तो आकाश की आत्मा को शान्ति देने में ज्यादा मदद मिलती. पर अगर आकाश की आत्मा एकता और रंजीत को देख रही होगी तो न जाने क्या सोच रही होगी.
जैसे - तैसे यह दिन भी गुजर गया. और अगले दिन सारे दोस्त फिर एक बार कॉलेज में मिलते हैं. आज एकता के लबों पे अजीब सी मुस्कान थी. और वो दूर से ही रंजीत की तरफ देख देख के मुस्कुराये जा रही थी. इसी बात पे अनीता ने आखिर एकता से पूछ ही लिया कि आखिर बात क्या है ? बहुत मना करने के बाद एकता ने बताया कि बीती रात उसने खुद को रंजीत को पूरी तरह से सौंप दिया था और वो मस्ती का आलम अब भी उसे मज़े दे रहा है.
इधर मयूर को लड़कों के समूह से पता चला कि बीती रात एकता और रंजीत के बीच क्या क्या हुआ था. इन बातों ने मयूर का दिमाग पूरी तरह से ख़राब कर दिया था. और फिर वो कॉलेज से घर की ओर जाने लगा... कॉलेज के साइकिल स्टैंड तक जाने से पूर्व ही वो अनीता और एकता से जा टकराया. पर एकता को देखते ही उसको न जाने क्यों पहली बार बहुत गुस्सा आया और उसकी ओर देख के उसने बिना कुछ कहे ही वहाँ से चला गया है पर उसकी आँखों ने उस वक्त जो कुछ कहा उससे एकता थोड़ी सी आश्चर्यचकित और परेशान भी हुई. तब अनीता ने एकता को इशारे से कहा कि मैं देखती हूँ और वो मयूर की ओर दौड़ती हुई चली गई.
अनीता ने मयूर की ओर आवाज लगते हुए कहा -
"मयूर, मयूर...
अरे सुन तो... !
क्या हुआ तुझे ?
कहाँ जा रहा है ?"
इतना कहते कहते वो मयूर के करीब पहुँच गई. तब मयूर ने पीछे मुड़कर उससे कहा -
"कुछ नहीं हुआ मुझे... आखिर मुझे क्या होगा ?"
"अरे ! तो फिर तू ऐसे ही क्यों आ गया बिना कुछ बोले ?"
"जैसे तुम कुछ भी नहीं जानती"
"मैं क्या... ? मैं क्या जानती हूँ ?"
"तू अब मेरा मुंह मत खुलवा... एक तो गलती करते हैं और फिर ख़ुशी में ढिंढोरा पीटते हैं कि हमने क्या गलती की है..."
"तू क्या बोल रहा है ? मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा"
"अरे ! वो एकता... "
"एकता ? क्या किया एकता ने ?"
"अनीता देख सारा कॉलेज जानता है की उसने कल क्या किया, और तू भी अच्छी तरह से जानती है ये"
"हाँ ! तो क्या बुरा किया उसने ?"
"हा हा हा..! आखिर तुमने वो बात साबित कर ही दी, जिसपे मैं बिलकुल विश्वास नहीं करना चाहता था.."
कौन सी बात, मयूर ?
यही कि आखिर क्यों एकता ने रंजीत को अपनाया ? क्योंकि उसे गम था कि उसे आकाश वो नहीं मिला जो कल उसे रंजीत से मिल गया. इसीलिए वो तीन - चार महीनो तक दुखी थी कि अब उसे प्यार कौन करेगा... आखिर वो भी उन आम लड़कियों की तरह ही निकली जो किसी का इंतजार नहीं कर सकती. अरे ! अगर ऐसा ही था तो उस बेचारे आकाश को क्यों इतने दिनों तक वो बेवकूफ बनती रही ?"
"य.. य.. ये तुम क्या .. कह रहे हो ? आखिर ये सब तुमको किसने बोला ?"
"ये सब मुझे एकता की डायरी से पता चला, गलती से एक दिन वो कॉलेज में अपनी डायरी ले आई थी और उस दिन भूल गई थी पर मुझे मिल गई थी तो मैंने रख ली ताकि अगले दिन उसको लौटा सकूँ. बहुत रोका खुद को उसकी डायरी पढने से, पर खुद को रोक न पाया. ये सब पढने के बाद मैंने तय किया था की ये बात तुमको भी नहीं बताऊंगा.... अरे ! मैं तो वो सारी बातें भी भूल गया था क्योंकि मैं एकता से प्यार...
पर तुमने... तुमने वो सारी बातें याद दिला दी... "
"म.. म... मयूर... तुम सच कह रहे हो ? मुझे विश्वास नहीं हो रहा..."
"हाँ ! सच कह रहा हूँ. यकीन न हो तो एकता से पूछ लो और फिर भी यकीन न हो तो जाओ आकाश के घर और उसकी छोटी बहन से आकाश की डायरी मांगना. आकाश अपने दिल की हर बात डायरी में लिखता था और अपनी छोटी बहन से हमेशा कहता था कि एकता कभी उसकी भाभी नहीं बन पायेगी. उसकी मौत के बाद उसकी बहन ने पूरी डायरी पढ़ी और उसमे पता है लास्ट पेज में क्या लिखा था आकाश ने ? "
"क.. क.. क्या ?"
"उसने लिखा था कि -
आज जा रहा हूँ के शायद फिर मुलाकात का वादा न कर पाउँगा...
के मुझे पता है कि तू बेवफा है, पर जीते जी मैं तुझे कभी बेवफा न कह पाउँगा... "
महेश बारमाटे "माही"
२८ जून २०११
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क्या जिन्दगी और प्यार सच में इतने बेवफा है ....
ReplyDeleteऐसे तो लोगो का प्यार से भरोसा ही उठ जायेगा
दर्द और बेवफाई से लबालब लेखनी ...........
yes , love is sweet poison,,,,,,,, so hate love and love story,,,,,,,,
DeleteYes pyaar mohabbat aaj ke zamane ke liye nahin hai medam..
DeleteAbhi to sirf dhoka hi milta hai. ..
पता नहीं मुझे इसमें लेखक का व्यक्तिगत अनुभव झलकता है...शायद मैं गलत होऊं..
ReplyDeleteकथा थोड़ी धीमी गति से बढती तो और सुन्दर होती...
सुन्दर प्रयास
anboojhe se mod kahani ko rochak banate hai...
ReplyDelete@आशुतोष की कलम
ReplyDeleteआशुतोष जी !
बिलकुल ठीक पहचाना... इस कहानी में थोड़ी सी सच्चाई का समावेश जरूर है पर पूर्णतया नहीं...
और ये कहानी मेरे लेखन के शुरूआती दौर में लिखी गई कहानियों में से एक है....
अतएव कथा धीमी न रह सकी...
फिर भी मैंने इसमें थोड़ा सा ठहराव लाने की कोशिश जरूर की है क्योंकि आज इसे फिर से लिखा गया है...
आपकी सराहना व सुझाव के लिए धन्यवाद
अनु जी और कविता जी !
ReplyDeleteआप दोनों ने अपना समय मेरे ब्लॉग को दिया...
बहुत बहुत धन्यवाद...
प्रिय श्रीमहेशजी,
ReplyDelete"जीते जी मैं तुझे कभी बेवफा न कह पाउँगा... "
बहुत बढ़िया,आपको ढेरों बधाई।
मार्कण्ड दवे।
दर्द और बेवफाई ... कहीं न कहीं जीवन के करीब है ये सचाई ...
ReplyDeleteअच्छी कहानी है ...
इतनी बडी कहानी को बहुत जल्दी जल्दी निपताने की कोशिश की है जबकि इससे बहुत अच्छी कहानी बन सकती है, कहानी ही नही बल्कि उपन्यास। बुरा मत माने मुझे लगता है आप बहुत अच्छी क्लहानी लिख सकते हैं ये ऐसे लग रहा है जैसे किसी को बात बता रहे हों। आज कल जिस तरह युवाओं की सोच बनती जा रही है उसके लिये बहुत अच्छा विषय है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteइस पीढ़ी के पल पल बदलते रिश्तों पर अच्छी कहानी !
ReplyDeleteMujhe meri bewfa mohabbat ki yaad aa gayi
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