I love you... virtually ! ;-)
I Love You !
नहीं?
क्यों?
यार एक बार कह के तो देखो किसी को, अगर एक्सेप्ट कर लिया तो फिर बहुत आसान सा लगने लगेगा। यार मालूम है कि मैं जो कह रहा हूँ वो तुमको मजाक लग रहा होगा, क्योंकि ये वर्ड्स हैं ही ऐसे। कई बार ये शब्द किसी से कहना बहुत कठिन हो जाते हैं (ख़ास कर तब जब पहली - पहली बार कहा जाए). मगर आज ये 3 शव्द बहुत आसान से हो गए हैं, जिसे देखो वो ही इनका जब चाहे यूँ ही उपयोग करे पड़ा है।
कैसे ?
अरे ! आज का युग टेक्नोलॉजी का युग है, इस युग में सब कुछ फ़ास्ट और cheap सा हो गया है। टेक्नोलॉजी ने हमारे आम जीवन में कुछ इस तरह पैठ बनाई है कि आज इसके बिना रहा ही नहीं जा सकता। कहाँ हम कागज तलाशते थे कुछ लिखने को, और आज कागज की जगह लैपटॉप, Tablet PC, Mobiles और Digital Diaries ने ले ली है, है न ? और एक और चीज जिसके बगैर आगामी पीढ़ी रह ही नहीं पायेगी वो है इन्टरनेट।

हम SMS में, chat में, मोबाइल कॉल्स में अपने दिलबर का चेहरा नहीं देख पाते। उसके चेहरे के हाव भाव नहीं देख पाते। शर्मो-हया का एक पर्दा होता है वो महीन पर्दा भी अब जाने कहाँ खो गया है ? बस एक एहसाह सा होता है, एक आभास सा कि मेरा दिलबर जो कुछ भी लिख रहा / रही है वो पूरे दिल से बोल रहा / रही है। उसकी कही / लिखी बातों को पढ़ के दिमाग एक आभासी चित्र बनाता है और वही चेहरा हमारे सामने आ जाता है, ये वो चेहरा है जो हम जानबूझ के देखना चाहते हैं और दिमाग हमारा कहना मान के हमें दिखा देता है। कितना वफादार है न अपना दिमाग ? ;-)
मैं नहीं जानता कि अब तक ऐसा कोई सर्वे हुआ या नहीं, पर इतना यकीन है मुझे कि इस तरह के Virtual World में पनपने वाले रिश्ते बस वर्चुअल ही रह जाते हैं। और अंज़ाम सिवाय break up के शायद ही कुछ होता हो। क्योंकि जब हम डायरी में लिखते हैं तो डायरी के सामने अपना पूरा दिल खोल के रख देते हैं, जैसा कि अभी मैं इस लेख को लिखते वक़्त कर रहा हूँ, पर कभी कभी बस वही लिखते हैं जो बस पढने में अच्छा लगे।
हमेशा दिल का सही हाल लिखें जरूरी तो नहीं ?
और ये सब तब होता है जब हम किसी को SMS, Chat Message, ईमेल इत्यादि लिख के भेजते हैं। हम अक्सर ऐसे मौके पे वही लिखते हैं जो या तो सामने वाले को सुनने में अच्छा लगे या फिर वो वही सुनना चाहता हो, फिर चाहे हमारा दिल या दिमाग ऐसी बात कहना चाहता हो या नहीं। और कभी कभी तो हम उनका लिखा हुआ ही कुछ और समझ लेते हैं, क्योंकि लिखने वाले का न तो चेहरा दिखाई देता है, न ही उसके लिखने का intentions और न ही उसकी true feelings. बस वही महसूस होता है जो हमारी काल्पनिकता हमें महसूस करवाना चाहती है और कुछ भी नहीं।
और यही सब तब भी होता है जब हम मोबाइल पर किसी दिलबर से बात करते हैं, उससे बातें कर के हम अपने दिमाग को एक ऐसे वर्चुअल वर्ल्ड की सैर कराते हैं जहां हमें हद से ज्यादा ख़ुशी मिलती है, ऐसी ख़ुशी जो हम खुद महसूस करना चाहते हैं।
हम उसे (अपने दिलबर को ) दोनों ही परिस्थितयों में देख नहीं सकते, पर हम उसे महसूस जरूर कर सकते हैं, पर उस तरह तो बिलकुल नहीं जिससे हमें सच्चे प्यार की अनुभूति हो। इसी बात पे के लाइन याद आई, लीजिये सुनिए -
"मैं प्यार के सागर में उतरा ही कब था, जो मैंने तेरी रूह को था छू लिया माही !
ऐ खुदा! ये तो वही बात हुई न के खाने की खुशबू से पेट भर गया मेरा ..."
हा हा हा !
चलिए 1 और कविता आपकी खिदमत में पेश कर ही देता हूँ मैं ... आप सुनेंगे न ?
तो अर्ज़ किया है -
के
इस वर्चुअल वर्ल्ड में
मुझे भी प्यार हुआ ...
मेरे प्यार का इक़रार हुआ,
हज़ार मर्तबा ...
इज़हार हुआ...।
कुछ गलतफहमियों का,
मैं भी शिकार हुआ ...
कुरेदा दिल को हर खुशफहमी ने मेरी,
के टूट के आज आखिरकार दिल मेरा
इमोशनली तार तार हुआ ...।
मैं रोया के सीने से दिल मेरा
जार जार हुआ...।
वो रोई के उसका दिल भी आज
ख़ाकसार हुआ...।
कोसा इक दूजे को हमने,
और ऐसा एक नहीं कई बार हुआ...।
फिर भी नहीं अपनी
गलतियों का हमें इकरार हुआ...।
आज वो सिर्फ एक याद है
जिसके संग बीता हर पल मेरा
गुल-ए-गुलज़ार हुआ...।
और यकीनन मैं भी,
बस उसके लिए ही,
बेईमान और बेकार हुआ...।
खता तो थी हमारी ही,
जिसका हमें न कभी एतबार हुआ...।
और हमारे ही हाँथों,
इमोशंस का हमारे बलात्कार हुआ...।
दोनों ही तरफ,
सच और इमोशंस के बीच
एक भीषण WAR हुआ...।
अब तुम ही कहो
ऐ माही मेरे !
के कब हमारे बीच था
सच्चा प्यार हुआ ?
- इंजी॰ महेश बारमाटे "माही"
23 जनवरी 2013
(Image source: http://www.futurity.org/tag/relationships/page/3/ and http://www.chatelaine.com/health/sex-technology-and-relationships/)
. एकदम सही बात कही है आपने .गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें
ReplyDeleteफहराऊं बुलंदी पे ये ख्वाहिश नहीं रही .
कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में …….