जब बाई कहे बाई बाई.. (व्यंग्य)

आज अपनी श्रीमती जी को, जो कि एक गृहिणी होने के साथ - साथ वर्किंग वुमन भी हैं, बड़ी ही बेबसी में देखा हमने। अब पत्नी जी का मिजाज खराब हो तो हम भी कश्मकश में पड़ गए, आखिर हुआ क्या..? ये बात पूछें या नहीं.. क्योंकि अगर पूछ लिया तो पता चला मिज़ाज हमारी ही किसी करतूत से बिगड़ा हो तो लेने के देने पड़ जाएं हमारे, और अगर नहीं पूछा तो पता चला पत्नी जी का मिज़ाज हमारे ऊपर किसी एटम बम के माफ़िक फट जाए। भाई, यहाँ तो हमारा मिज़ाज़ ही पानी मांगने की हालत में आ गया था। फिर भी संयम से सोचा हमने कि जरा बिना पूछे ही तहक़ीक़ात कर ली जाए, जिससे श्रीमती जी के मिजाज के एटम बम के हमारे सर पे फटने से पहले ही उसे डिफ्यूज किया जा सके।
तो हमने पत्नी जी की फोन पर किसी महिला मित्र से होने वाली गुफ्तगू को चुपचाप से अपने कानों को ऊँचा करते हुए आखिर सुन कर तसल्ली कर ली कि एटम बम की जीपीएस लोकेशन आज कहाँ की है.?
कानों के गुप्त सूत्रों के अनुसार, हमारी पत्नी जी आज परेशान, हैरान, और गुस्से में महान, केवल अपनी काम वाली बाई की वजह से हैं। क्योंकि उसने शायद कह दिया है कि वो कुछ दिन नहीं आने वाली। अब ऐसे में पत्नी जी का पारा जाने किस आसमान पे जा पहुंचा हमे तो पता ही न चला, क्योंकि हम तो सीधे साधे से लेखक हैं कोई एस्ट्रोनॉट नही, जो स्पेस में सुई ढूंढने निकले हों।
पत्नी जी परेशान, अब समस्या का हल कैसे निकाला जाए? क्योंकि पिछले दिनों हमारी मेरा मतलब है मेरे घर पे जो काम वाली बाई आती है वो करीब 10-12 दिन किसी ठोस कारण से ही गायब रही है। अब सोचिये, पत्नी जी को कितना काम करना पड़ा, खाना, कपड़ा, झाड़ू, पोछा और न जाने क्या क्या.. हालांकि हमारी श्रीमती जी खाना तो खुद ही बना के हमको खिलाती हैं, इतने खुशनसीब तो हम हैं पर बाकी काम? वो तो बहुत होता है जी। क्योंकि श्रीमती जी एक वर्किंग वुमन भी तो हैं। ऐसे में काम का अतिरिक्त बोझ, न भाई न, ये नाइंसाफी है काम वाली बाई की।
ऐसी सिचुएशन में तो मुझे मेरे ऑफिस की एक व्यवस्था याद आ गई, वो ये कि अगर कोई सब स्टेशन ऑपरेटर छुट्टी पर जाता तो उसकी जगह हम एक ऑफ रिलीवर रखते हैं जो उसकी ड्यूटी निभाता। जिससे व्यवस्था भंग भी नहीं होती और मानव अधिकार आयोग वालों को मुद्दा मिलने से भी रह जाता। तो मैं सरकार से गुजारिश करना चाहूंगा कि जिन जिन घरों में काम वाली बाई काम कर रही हैं, उनके लिए भी कुछ ऐसी ही व्यवस्था सोचे, जिससे कि काम वाली बाइयों को भी छुट्टी लेने का अधिकार मिले, एक ऑफ रिलीवर की व्यवस्था तो सरकार कर ही सकती है न और हमारी श्रीमती जी जैसी गृहणियों और वर्किंग वुमन को भी काम वाली बाई के टाटा बाई - बाई कहने पर दुख न हो। और सबका काम चलता रहे।
राज़ की बात बताऊँ, इस व्यवस्था से हम बेचारे पतियों को भी श्रीमती जी के मिज़ाज खराब होने से गुस्से के एटम बम के खतरे से कुछ हद तक मुक्ति मिल जाएगी। आखिर पतियों की शुभकामना की चिंता हम लेखकगण नहीं करेंगे तो क्या ये एक बार सदन में शपथ लेने वाले, लाखों की पेमेंट और बाद में ज़िन्दगी भर पेंसन लेने वाले करोड़पति, अरबपति, सबके प्रिय, मीडिया के लिए हमेशा खबर बनने वाले नेता लेंगे..? न जी न..
जरा सोचिए..। सोचियेगा जरूर..।

- महेश "माही"

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