कल्याण मित्रता (Good Company)

    कल्याण मित्रता अर्थात भली संगति, जिसके बारे में गौतम बुद्ध ने कहा है कि 
        "भिक्खुओं! मैं और कोई दूसरी ऐसी बात (धम्म) नहीं देखता जिससे अनुत्पन्न कुशल धर्म उत्पन्न हो जाते हैं और उत्पन्न अकुशल - धर्मों की हानि होती है, जैसे कि भिक्खुओं, यह भली संगति (कल्याण - मित्रता) । भिक्खुओं! भली संगति करने वाले के अनुत्पन्न कुशल धर्म उत्पन्न हो जाते हैं और उत्पन्न अकुशल - धर्मों की हानि होती है।"
    जैसा कि हम बचपन से अपने बड़ों से, अपने शिक्षकों इत्यादि से ये बात सुनते आ रहे हैं कि अच्छी संगत में रहने में ही भलाई होती है, अच्छी संगत (good company) में हमें अच्छी बातें सुनने और सीखने को मिलती है, ऐसे में बचपन में हमें ये कौन बताये कि आखिर किस बच्चे से दोस्ती करने में अच्छी संगत होगी ? बस हम ये समझ लेते हैं कि जो क्लास में टॉप करता है या जो थोड़ा ज्यादा ही एक्टिव टाइप का बच्चा है उसके साथ दोस्ती कर लेना ही अच्छी संगत में रहना होता है. खैर! बालमन के लिए ये ही अच्छी संगत हो सकती है, पर जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारी सोच, हमारी संगति बदलते जाती है. और एक दिन हमें ये समाज हमारी आदतों और हरकतों से judge करने लगता है कि इसकी संगति सही है या नहीं. 
    पर क्या कभी ये सोचा है कि बड़े-बुजुर्गों के द्वारा दी गई शिक्षा और हजारों वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध द्वारा दी गई शिक्षा अनुसार भली संगति में रहना लाभदायक क्यों है ? 
    आज जब तथागत बुद्ध द्वारा कही गई ये बात मैं त्रिपिटक साहित्य के "अंगुत्तर निकाय" में पढ़ रहा था, तब पढ़ते - पढ़ते ही मुझे ये चिंतन हुआ कि सच ही तो लिखा है इसमें, अगर हम सही संगत में रहेंगे तो हमारे मन में वो सभी अच्छी भावनाएं जन्म लेंगी जो शायद कभी हमारे मन में कभी न रही होगी, और अच्छी संगत में रहने से हमारे अंदर छुपी कई बुरी बातें भी धीरे - धीरे ख़त्म होती ही जाएँगी. क्योंकि अच्छी संगति हमारी आदतों में बदलाव लाएंगी, जिससे हम अच्छे कर्मो को करने में अपना समय व्यतीत करने लगेंगे, हम अच्छे विचारों से अपने चित्त को भर देंगे जिससे सभी बुरी बातें धीरे - धीरे समाप्त हो जाएँगी और यह अच्छी संगति अंततः हमें अंदर ही अंदर निर्मल करती जायेगी। 
    मेरे इन विचारों से शायद आप सहमत न हों, पर यदि कभी मन के भीतर से आप सोचोगे तो समझ में आएगा कि ये जो प्रतिदिन हम इंस्टाग्राम में रील्स में जो कुछ भी देख रहे हैं, उससे हमारे मन में क्या बदलाव आ रहे हैं, इंस्टाग्राम भी आजकल एक संगति के रूप में जाना जाए तो कुछ गलत नहीं है. क्योंकि इंस्टाग्राम में हमें हर तरह की सामग्री मिलती है, कुछ ज्ञानवर्धक, कुछ बेढंगी (fake), कुछ आध्यात्मिक और कुछ अश्लील भी. बस ये हमारे अंदर है कि हम किस तरह के कंटेंट को देखें. अगर अच्छी संगति में रहेंगे, तो आध्यात्मिक, मोटिवेशनल और सत्य से परिपूर्ण सामग्री ही हम देखना चाहेंगे, और फिर उसके अनुसार ही अपनी दिनचर्या में परिवर्तन कर पाएंगे. नहीं तो समाज को गलत राह में जाते तो हम सभी देख रहे हैं. 
    आदतें हमारी दृढ़ इच्छा से ही बदल सकती हैं, पहले इच्छा शक्ति में बदलाव लाना जरुरी है, फिर अनुशासन और फिर एकाग्रता। जिसमें भी ये तीनों बातें हो, वह स्वयं को बदल सकता है, और जिसने स्वयं को बदल लिया, वह दुनिया बदलने के काबिल बन सकता है. 
    आज के लिए बस इतना ही, मिलते हैं फिर किसी अन्य टॉपिक के साथ, जिससे आपके विचारों को पँख लग सकें. 
धन्यवाद् ! 
    

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