थैंक्यू बेटी
आज मैंने अपनी बेटी से 1 सीख सीखी, अब कोई कह सकता है है कि वह तो बस 1 साल की है, वह क्या ही सिखा सकती है? पर ऐसा हुआ है, आज उससे मुझे 1 सीख मिली है। सीख से पहले मैं वो किस्सा बताना चाहूँगा जिसमें मुझे ये अनमोल सीख मिली है।
आज मेरी बेटी और मैं, हम दोनों अपने बिस्तर पर खेल रहे थे। अभी कुछ दिन पहले ही उसने अपने पैरों पर चलना शुरू ही किया है, वो डगमगाते हुए कदमों से जब मेरी तरफ आती है तो बड़ी प्यारी लगती है। और ऐसे ही आज जब वो मेरी तरफ आ रही थी तो अनबैलेंस होकर वो बिस्तर पर बैठ गई, पर वो नहीं रोयी। वो और ज्यादा खिलखिला कर हंसने लगी। फिर उसकी हँसी को बरकरार रखने के लिए मैंने उसके लिए ताली बजायी। जिससे उसे और मजा आया। जिसके बाद वह बार - बार मेरी तरफ आती और जानबूझ कर अनबैलेंस हो कर बैठ जाती, और हंसते हुए तालियाँ बजाने लगती।
इस सब किस्से में मुझे उसके गिरने और खुद के लिए ताली बजाने से ये सीखने को मिला कि आखिर क्या हुआ जो आप अपने किसी काम या मिशन में फेल हो गए, आप उस वक़्त भी मुस्कुरा सकते हैं, मुस्कुरा ही क्यों खिल कर हँस भी सकते हैं और खुद को अपनी की गई कोशिश के लिए प्रोत्साहित भी कर सकते हैं। खेल है बस नज़रिए का।
आज मेरी बेटी बोधि ने मुझे हार कर भी खुद को प्रोत्साहित करने और सदा हंसते रहने की शिक्षा दी। और हमेशा इस सीख को मन मे लिए जीने का प्रयास करता रहूँगा।
थैंक्यू बेटी।
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