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Showing posts from June, 2011

बेवफा...

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"ए कता, जो कल तक आकाश के साथ अक्सर दिखाई देती थी, आज तन्हाइयों ने उसे कुछ इस तरह घेर लिया है की दोस्तों की महफ़िल में भी वो अकेली दिखाई देती है. आज वो सच में बहुत अकेली और उदास हो गयी है. कारण है - आकाश की अचानक हुई सड़क दुर्घटना में मौत... एकता और आकाश एक दुसरे को बहुत चाहते थे, एक दुसरे की खातिर जान तक देने को तैयार थे वो दोनों... उन्होंने ने भी प्यार में संग जीने मरने की कसमे खायी थी, मगर होनी को आखिर कौन टाल सकता है ? आज एकता पूरी तरह से टूट चुकी है, लगता है जैसे किसी फूलदार डाली के सारे फूल हवा के एक हल्के से झोंके ने पल भर में ही बिखेर दिए हों.  कल तक एकता को आकाश पर बहुत नाज़ था, क्योंकि एक हिन्दुस्तानी लड़की को जिस तरह के आदर्श लड़के (जीवन साथी के रूप में) जरूरत होती है, वह सब कुछ आकाश में था. न किसी तरह का ऐब और प्यार के अलावा किसी और तरह का नशा. दोनों की जोड़ी भी आदर्श जोड़ी ही लगती थी. पर ये समय........,  न कभी किसी का हुआ है और न ही कभी किसी और का हो पायेगा..." -- कुछ ऐसे ही जज़्बात बयाँ कर रहीं थी, आज अनीता की आँखे, मयूर की तरफ देख कर. ...

ब्लॉग - माही की पचासवीं पोस्ट

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आज मैं अपने कविताओं भरे ब्लॉग - माही की पचासवीं पोस्ट   तथा उसके नए स्वनिर्मित संस्करण की खुशियाँ बांटने आया हूँ...  आज बड़े दिनों बाद मैंने अपने ब्लॉग माही में कोई कविता पोस्ट की है... क्योंकि पिछले कुछ दिनों से मैं थोडा व्यस्त चल रहा था... फिर जब फुर्सत मिली तो पाया कि माही ब्लॉग में 49 पोस्ट हो चुकी हैं तो सोचा कि इस ब्लॉग को एक नया रूप दिया जाए, तो बस इसी कार्य में लग गया. फोटोशॉप सॉफ्टवेयर जिसे मैंने कभी छुआ भी न था, इस काम के लिए न केवल उसे छुआ बल्कि सफलता भी पायी. पर इस काम में मुझे 5 दिन लग गए, क्योंकि फोटोशॉप और Artisteer सॉफ्टवेयर को चलने का पहला अनुभव थोड़ा कठिन ही था. सब काम हो जाने के बाद सोचा कि एक अच्छी सी कविता भी लिखी जाए, पर दिल से रहा ही न गया कि कोई नयी कविता लिखी जाए तो बस अपनी डायरी उठाई और अपने दोस्तों को समर्पित एक कविता " वो गए... दिल गया... " पे नज़र जाते ही इसे लिखने का मन किया सो मैंने आपके समक्ष पेश कर दी अपनी कविता. इस कविता का एक और महत्त्व है, क्योंकि जब ये कविता मुझे मेरे कॉलेज फ्रेंड्स की याद दिलाती है. वे सारे मेरे लिए बहुत ही ख़ास हैं, क...

Facebook पे Group Chat : एक मजेदार अनुभव

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      कु छ दिनों पहले मेरे सारे दोस्त, काम की तलाश में बहार चले गए, चूंकि मेरे ख़ास दोस्तों की संख्या  बहुत कम है इसीलिए उनकी कमी बहुत खलती है आज मुझे. मेरे कुछ ही दोस्त हैं जिनमे से ख़ास तो बस तीन - चार ही हैं जिनसे मैं अपने दिल की सारी बातें शेयर करता हूँ.. और आज जब वो लोग यहाँ नहीं है तो थोड़ा सूनापन सा लगता है. ये वो दोस्त हैं जो बचपन से ही मेरे साथ हैं पर पिछले कुछ महीनो में हम इतने करीब आ गए थे कि दूर होना, ख्वाब में भी डराता था. भगवान न करे की आप में से किसी का भी ख़ास दोस्त आपसे जुदा हो.           चूंकि वो लोग अपने काम के सिलसिले में वहाँ गए हैं तो मैं उनको कभी बिना सफलता के वापिस आने नहीं कहूँगा. मेरे लिए उनकी दोस्ती से ज्यादा उनके जीवन की सफलता है. और मैं चाहूँगा कि वे अपना हर ख्वाब जीयें उसे पूरा करें और हर वो ख़ुशी पायें जो उन्हें मिलनी चाहिए.          आज वो मुझसे दूर हैं पर मोबाइल ने हमको साथ जोड़े हुए है. पर कभी कभी आर्थिक हालातों के चलते मोबाइल भी इन दूरियों को कभी कभी कम नहीं कर पाता. फिर ख्याल आत...

एक सोच, एक सुझाव और एक क्रांति

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      जब से मैं इस ब्लॉग्गिंग की दुनिया में आया हूँ, तब से मैंने पाया है कि लगभग हर प्रदेश या शहर विशेष के चंद चिट्ठाकारों (Bloggers) ने मिल कर एक ब्लॉग असोसिएशन बना लिया या फिर किसी स्थान विशेष पर निश्चित समय पर पहुँच के एक छोटी सी संगोष्ठी या सम्मलेन का आयोजन कर डाला. सम्मलेन में कुछ लोगों को उनके हिंदी ब्लॉग्गिंग क्षेत्र में अद्वितीय योगदान के लिए कुछ पुरुस्कार भी दिए गए और फिर हिंदी ब्लॉग्गिंग के सुन्दर भविष्य पर थोड़ा चिंतन व मनन के पश्चात् उस समारोह का सारा सारांश समाचार के रूप में चित्रों समेत किसी ब्लॉग विशेष पे सजा दिया जाता है.      डरिये मत, मैं ऐसे किसी भी समारोह या असोसिएशन के खिलाफ नहीं हूँ, बल्कि मैं यह बताना चाहता हूँ कि इस साहित्य जगत में एक शहर ऐसा भी है जहां से साहित्य के अनमोल हीरे निकले और उन्होंने हिंदी साहित्य को गगनचुम्बी ऊंचाइयों तक पहुँचाया. उनमे से कुछ अनमोल हीरों के नाम मैं लेना चाहूँगा - "श्री हरिशंकर परसाई जी, सुभद्रा कुमारी चौहान जी, द्वारका प्रसाद मिश्र जी, भवानी प्रसाद मिश्र जी ... " और न जाने कितने हीरों का श...

ताकि "हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड" इतिहास न बन जाये...

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नमस्कार दोस्तों ! आज बड़े लम्बे समयांतराल के बाद मुझे फुरसत मिली. किसी व्यक्तिगत कार्य में व्यस्त होने के कारण आज तक मैंने अपनी ब्लॉग्गिंग को तरसती उँगलियों को न जाने किस तरह रोक के रखा था, ये या तो मैं जानता हूँ या आप (क्योंकि आप भी तो एक ब्लॉगर ही हैं, और ब्लॉगर ही ब्लॉगर का दर्द जान सकता है). वैसे आज मैंने अपनी व्यस्तता से थोड़ा सा समय चुरा ही लिया और आपके समक्ष हाज़िर हो गया. चलिए अब काम की बात की जाये. पिछले महीने मैंने अपने एक लेख में सभी से आह्वान किया था ताकि सारे ब्लॉगरगण हमारी मदद करें - हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड हेतू और आप सभी के स्नेह से हमें बहुत से लोगों के कमेंट्स व ईमेल मिले जो कि " हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड " के लिए अपना योगदान देना चाहते थे. मैं उन सभी ब्लॉगरगण का तहे-दिल से आभारी हूँ कि उन्होंने मेरे एक आह्वान पे दौड़े चले आये और आशा करता हूँ कि इसी तरह मुझे आप सभी का स्नेह व सहयोग मिलता रहेगा. आज करीब पच्चीस दिन हो गए होंगे मेरे उस लेख को और सभी ब्लॉगरगणों को विषय दे दिए गए थे ताकि वे हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के निर्माण में जल्द से जल्द सहयोग कर के इसके कार्य को अगल...

ख़ुशी की बात

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नमस्कार दोस्तों !  आज मन बहुत खुश भी है और उदास भी...  वैसे अपनी उदासी के बारे में आज कुछ भी न कहूँगा, और शायद कभी नहीं कहूँगा क्योंकि जितना मैं उसके बारे में सोचूँगा उतना ही उदासियाँ मुझे घेरते जाएँगी... तो चलो आज ख़ुशी की बात ही हो जाए... ख़ुशी की बात ये है कि आज मैंने ज़िन्दगी में पहली बार कोई नाटक (play) देखा, देख के मन बहुत प्रसन्न हुआ. आज हमारे शहर जबलपुर में एक नाट्य मंच की ओर से एक नाटक "सवाल और स्वप्न" का मंचन किया गया. और ख़ुशी इस बात की हुई कि सारे कलाकार युवा थे तथा उस नाटक का निर्देशक भी एक २४ - २५ साल के नवयुवक "संदीप जी" ने किया है. थोड़ी छानबीन करने के बाद पता चला कि वे नाट्य कला के साथ - साथ लेखन में भी रूचि रखते हैं, पर समयाभाव के कारण हमारी ज्यादा बात ही न हो सकी, पर इतना जरूर विश्वास है मुझे कि हम फिर मिलेंगे और इस विषय पर लम्बी चर्चा भी करेंगे. अब बात की जाए नाटक की पृष्ठभूमि की, तो यह नाटक पारिवारिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया है और इसे श्री कृष्ण बलदेव वैद जी ने लिखा है... इस नाटक के कुछ अंश आप यहाँ भी पढ़ सकते हैं.. - http://pustak.org:5200/bs/...