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Showing posts from 2018

सब्जी क्या बनाऊँ : एक राष्ट्रीय समस्या (व्यंग्य)

 हमारे भारत में राष्ट्रीय तौर पर उभर रही है एक समस्या, जिससे समस्त गृहणियाँ और साथ में बेचारे पति भी परेशान रहते हैं, उससे न जाने कितने परिवारों में दिन में न जाने कितनी बार मनमुटाव, लड़ाई झगड़ा और यहाँ तक कि मार पीट की भी नौबत आ जाती है, उस समस्या का नाम है - " सब्जी क्या बनाऊँ?" जी हाँ! इस समस्या से मेरे हिसाब से लगभग हर पति परेशान हुआ जरूर होगा। वैसे तो ये समस्या केवल गृहणियों की ही है पर इसके साइड इफ़ेक्ट तो सबसे ज्यादा पतियों को ही झेलने पड़ते हैं। और ये समस्या अक्सर शाम के वक़्त ही देखने को मिलती है, क्योंकि हमारे देश के सर्वाधिक पति जब भी काम से घर लौटते हैं, उनसे ये बात जरूर पूछी जाती है, कि सब्जी क्या बनाऊँ? अब ऐसे में बेचारा पति जो ऑफिस से बॉस की खरीखोटी सुन के आया हो, किसी उपभोक्ता से या अपने क्लाइंट से अपनी कंपनी या विभाग की गलत नीतियों को सही साबित करने के चक्कर में ही कुछ जबरदस्त टाइप की बहस कर के आया हो, उसके दिमाग मे अब भी उसी बॉस, क्लाइंट या उपभोक्ता की बातें घूम रही हों, तो भी वो खुद को नॉर्मल सा दिखाने के चक्कर में मन को शांत कर रहा हो, तभी उनकी प्रिय पत्नी जी न...

आप तो बड़े शौकीन हैं.. (व्यंग्य)

भाई, मैंने अब तक की अपनी ज़िन्दगी में तरह - तरह के शौक रखने वाले देखे हैं, किसी को क्रिकेट देखने का शौक, तो किसी को क्रिकेट खेलने का शौक, किसी को कुछ खाने का शौक, तो किसी को कुछ पीने का शौक, लाखों तरह के शौक पालते हैं लोग। अब हिन्दी के मशहूर व्यंग्यकार "श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी" के व्यंग्यों में कथित " रामभरोसे जी " को ही देख लो, उसे भी सरकार से नई - नई आशाएं रखने का शौक है, पर इस शौक के चलते वो बेचारा लगभग हर बार वोट बैंक की राजनीति में फंस ही जाता है और दूर न जाये, आप मुझे ही देख लो मैंने भी तो लिखने का शौक पाल रखा है। खैर! मेरी छोड़ो..। आदि काल से ही तरह -  तरह के शौक रखना इंसान की फितरत में ही होता आ रहा है, अगर ऐसा न होता तो कोलंबस ने अमेरिका न खोजा होता। मेरे ख्याल से कोलंबस भाई को यात्राएं करने का शौक रहा होगा, और अगर वो भारतीय होता तो घर वाले तो उसे अपनी गली से भी बाहर नहीं जाने देते। उससे हर पल यही पूछते कि तुझे क्या पड़ी है अमेरिका खोजने की, ये काम कोई और नहीं कर सकता क्या? वगैरह वगैरह सवालातों से बेचारे कोलंबस भाई का जीना हराम कर दिया होता। और वो अमेरि...

डिफॉल्टर विद्युत उपभोक्ता दिवस.. (व्यंग्य)

किसी गाँव में दो पति पत्नी के बीच की बातचीत.. "अजी सुनते हो.." "क्या हुआ..?" "अरे! मैंने सुना है कि अपना बिजली का बिल माफ किया जा रहा है.." "क.. क्या.. क्या बात कर रही हो भागवान.." "हाँ! सही कह रही हूँ, अभी जब आप अपने नकारा और निकम्मे दोस्तों के साथ जुआ खेलने बाहर बैठे थे न, तो मैं टीवी पे न्यूज सुन रही थी, उसमे बता रहे थे कि सरकार ने हम जैसे लोगों का बिजली का बिल माफ कर दिया है, और तो और हमारे ऊपर जो पिछले साल अस्थायी मोटर पंप कनेक्शन चलाने पर जो कोर्ट केस बना था, न वो भी माफ कर दिया है सरकार ने।" "अच्छा, और क्या बता रहे थे न्यूज पे..?" "ज्यादा कुछ नहीं बताया बस ये बताया है कि बिल माफी के लिए बिजली ऑफिस जाना पड़ेगा, बिल लेकर.." "अब यार! ये बिल कहाँ से लाऊँ?" " क्यों.. अपने पास बिल नहीं आता क्या?" "अरे! नहीं भागवान, पिछले महीने जब लाइन मैन बिल लेकर आया था तो मैंने उसको बहुत सुनाया कि बिजली तो आती है नहीं तो बिल काहे का, और बहुत गंदी गंदी गालियाँ देकर बिल उसी के मुँह पर फाड़ के फेक दिया था, सह क...

तुम केपीओ हो, केपीओ.. (व्यंग्य)

सदियों से इस देश में निचले वर्ग का शोषण हो रहा है, और अब तो ये रिवाज हो गया है। पहले जाति के नाम पर शोषण होता था, आज गरीबी और पद के नाम पर होता है। अमीरों के द्वारा गरीबों का शोषण तो पहले भी होता ही था और अब भी होता ही है, पर जाने कब से प्रथा सी बन गई है कि आप अगर निचले पद पर हों तो आपका शोषण ऊँचे पद वाले व्यक्ति विशेष जरूर करेंगे। और खास तौर पे हमारे सरकारी विभागों के कार्यालयों में। बात इतनी सी है कि छोटा कर्मचारी अगर शिकायत करेगा तो उसकी सुनेगा कौन? और अगर वह कर्मचारी बाह्य स्त्रोत मेरा मतलब है कि आउट सोर्स से हो तो वो तो कुछ कर ही नहीं सकता, क्योंकि नौकरी जाने का डर तो सबको होता है न।  बाह्य स्त्रोत की बात से याद आया कि आज कल जाने कहाँ से सरकारी विभागों ने फंडा बना रखा है कि कर्मचारियों की कमी को आउट सोर्स के माध्यम से ही भरा जावे। वैसे आउट सोर्स व्यवस्था के बहुत सारे फायदे हैं, कुछ एक बता ही देता हूँ।  पहला तो ये, कि नियमित कर्मचारी को जहाँ मोटी मोटी रकम सैलरी के तौर पे दी जाती थी, वहीं आज आउटसोर्सिंग के माध्यम से 5 गुना कम कीमत में नवीन बेरोजगार युवा पीढ़ी को रोजगार मिल ज...

बेलन, बीवी और दर्द (व्यंग्य)

शीर्षक पढ़ के क्या सोच में पड़ गए जनाब..? कहीं आपको आपकी ज़िंदगी का कोई किस्सा तो याद नहीं आ गया? अजी मैं उसी बेलन का ज़िक्र कर रहा हूँ जिसके बगैर एक आदर्श भारतीय घर का किचन अधूरा होता है..। यूँ तो हम सभी जानते हैं कि बेलन का महत्व हम सब की ज़िन्दगी में क्या होता है और क्यों..? यार! बेलन न हो तो रोटी बनाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है, बेलन न हो तो आपके फेवरेट पराठे और गरमागरम पूड़ियाँ कैसे बनेंगी? सोचो कि अगर बेलन का आविष्कार नहीं हुआ होता तो आज हम तरह तरह की डिश का लुत्फ कैसे उठाते..? न रोटियाँ सही आकार व मोटाई में मिलती, न पराठे व पूड़ियाँ और न ही खाने के साथ हमेशा साथ देने वाले तरह - तरह के पापड़ का हम लुत्फ़ उठा पाते.. मैं तो हमेशा से ही इन छोटी - छोटी चीजों के आविष्कारकों  को नमन करता रहता हूँ कि आखिर उनके ही कारण मेरा जीवन आसान बन पाया है। ये तो रहा बेलन का पहला पहलू.. अब बात रही एक अन्य पहलू की.. हालांकि बेलन किसी सिक्के की तरह गोल नहीं होता कि इसका कोई दूसरा पहलू हो, पर व्यहवारिकता में तो इसके एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीन पहलू होते हैं, जो मैंने अभी अभी जाने हैं।  तो मैं बात कर रहा थ...

Dhanno, Basanti aur Basant... (धन्नो, बसंती और बसंत)

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नमस्कार दोस्तों! बहुत दिनों बाद, कुछ दिल से... लिखने का मन किया... हालांकि मैं अक्सर दिल से ही लिखता हूँ, फिर भी आज सोचा आपसे साझा किया जाये तो बहुत अच्छा होगा। मेरे इस लेख के शीर्षक से आपको सुप्रसिद्ध हिन्दी फीचर फिल्म "शोले " की याद आ गई होगी। और शायद आप सोच रहे होगे कि मैं बीते जमाने की इस सुपरहिट फिल्म के बारे में कुछ नया या फिर कुछ घिसपिटा सा सुनाने वाला हूँ। तो दोस्तों! ऐसा कुछ भी नहीं है।  मैं तो आदरणीय व्यंग्यकार, जिन्हे ब्लॉग जगत में सभी जानते हैं, श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी द्वारा रचित व्यंग्य संकलन " धन्नो, बसंती और बसंत " के बारे में अपना अनुभव आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। और सच कहूँ तो यह पहला व्यंग्य संकलन है जिसे मैंने पढ़ा है। हालांकि मैंने और भी कई किताबें पढ़ी हैं पर व्यंग्य पहली बार।  इस किताब की शुरुआत में ही मुझे हास्य और व्यंग्य दोनों विधाओं में जो सूक्ष्म अंतर है वो समझ में आ गया। डेली हंट ई-बुक्स के एण्ड्रोइड एप के माध्यम से मुझे उनका यह संकलन पढ़ने को मिला। अभी कुछ दिन पहले ही मैंने यह किताब (ई- बुक) डाउनलोड की और अब भी पढ़ ही रहा हू...