साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक
अभी एक - दो दिन से मेरे ईमेल में जनोक्ति.कॉम की ओर से मेल आ रहा है कि "साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक" पर अपने त्वरित विचार हमें दें.
शुरू में तो मुझे ये विधेयक समझ में नहीं आया, पर जब राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (National Advisory Council) के द्वारा तैयार मसौदे की प्रमुख बिंदु पढ़े तो लगा कि अब भी कुछ कमी है. मैं यहाँ मसौदे के प्रमुख बिन्दुओं तथा उन पर अपने विचार आपके समक्ष प्रस्तुत करूँगा. हो सकता है कि हमारे विचारों में मतभेद हो सकते हैं अतः आप सभी से गुजारिश है कि इन बातों को बस मेरे विचार समझ के बेवजह के वैचारिक मतभेद से खुद को बचायें.
नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) द्वारा सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-
1) कानून-व्यवस्था का मामला राज्य सरकार का है, लेकिन इस बिल के अनुसार यदि केन्द्र को “महसूस” होता है तो वह साम्प्रदायिक दंगों की तीव्रता के अनुसार राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकता है और उसे बर्खास्त कर सकता है…
2) इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा “बहुसंख्यकों” द्वारा ही फ़ैलाया जाता है, जबकि “अल्पसंख्यक” हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं…
3) यदि दंगों के दौरान किसी “अल्पसंख्यक” महिला से बलात्कार होता है तो इस बिल में कड़े प्रावधान हैं, जबकि “बहुसंख्यक” वर्ग की महिला का बलात्कार होने की दशा में इस कानून में कुछ नहीं है…
4) किसी विशेष समुदाय (यानी अल्पसंख्यकों) के खिलाफ़ “घृणा अभियान” चलाना भी दण्डनीय अपराध है (फ़ेसबुक, ट्वीट और ब्लॉग भी शामिल)…
5) “अल्पसंख्यक समुदाय” के किसी सदस्य को इस कानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती यदि उसने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ़ दंगा अपराध किया है (क्योंकि कानून में पहले ही मान लिया गया है कि सिर्फ़ “बहुसंख्यक समुदाय” ही हिंसक और आक्रामक होता है, जबकि अल्पसंख्यक तो अपनी आत्मरक्षा
कर रहा है)…
6) न्याय के लिए गठित होने वाली सात सदस्यीय समिति में से चार सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय से होंगे. इनमें चेयरमैन और वाइस चेयरमैन शामिल हैं. ऐसी ही संस्था राज्य में बनाए जाने का प्रस्ताव है. इस तरह संस्था की सदस्यता धार्मिक और जातीय आधार पर तय होगी.
अब मेरे विचार भी जान लें -
- नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) द्वारा तैयार किये गए मसौदे के पहले, दुसरे व चौथे बिंदु पर मेरे कोई विचार नहीं क्योंकि ये मेरे हिसाब से सही हैं.
- अब बारी आती है तीसरे प्रमुख मसौदे की, इसमें उन्होंने सुझाव दिया है कि अगर किसी अल्प संख्यक महिला के साथ दंगे के वक्त बलात्कार होता है तो उन लोगों के लिए दंड के कड़े प्रावधान होंगे, पर अगर किसी बहुसंख्यक वर्ग की महिला के साथ बलात्कार होगा तो उसके लिए कोई कानून न होगा. अब मैं नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) से पूछना चाहूँगा कि क्या बहुसंख्यक वर्ग की महिला की कोई इज्ज़त नहीं होती क्या ? भारत वो देश है जहां सदा से ही महिलाओं को मान सम्मान की नज़रों से देखा गया है. आज भारत की महिला पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही है. तो क्या ऐसे में महिलाओं को किसी वर्ग विशेष की होने पर ही दंगों के वक्त विशेष क़ानूनी सहायता मिलेगी ? अरे ! कोई इनको बताये कि महिला महिला होती है, कोई सामाजिक मान्यता नहीं कि मन किया तो मान दिया नहीं तो अपमान कर लिया. नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) से दरख्वास्त है कि महिला चाहे किसी भी वर्ग की हो (बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक) बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के लिए सांप्रदायिक या लक्षित दंगों की स्तिथि में किसी को भी न छोड़ा जाए.
- पांचवे प्रमुख बिंदु के बारे में कुछ सूझ ही नहीं रहा कि इसके पक्ष में बोलूं या विपक्ष में इसी लिए मैं क्षमा चाहूँगा.
- छठवें बिंदु में इन्होने सात सदस्यीय समिति के गठन का विचार दिया है जिसमे से चार अल्प संख्यक समुदाय के होंगे. इस बात पर भी एक सुझाव है, क्यों न दोनों वर्गों को पूरा-पूरा व बराबरी का अधिकार दिया जाए. और जो भी इस समिति का चेयरमेन व वाइस चेयरमेन हों वो पूरी तरह से किसी भी वर्ग से सम्बंधित न हो ताकि वे किसी वर्ग विशेष को महत्व न दें. बल्कि निरपेक्ष न्याय करे. और हर दंगे के वक्त एक नयी समिति का गठन हो वह भी तुरंत ताकि अल्प व बहु संख्यक समुदाय दोनों की बात सरकार तक पहुँच सके तथा कुछ विशेष सदस्य भी हों क्योंकि हर बार दंगे जरूरी नहीं कि किन्ही दो विशेष धर्मो या जाति के लोगों के बीच हों.
आशा है, मेरी बात सब तक जरूर पहुंचेगी. मुझे नहीं पता कि ये सुझाव सीधे ही नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) के पास पहुँच जाएगी या प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जी के पास पहुंचेगी, पर मुझे विश्वास है कि जनता के लिए बनाये जाने वाले विधेयक में जनता का योगदान होना जरूरी है ताकि किसी के विचारों या अधिकारों का हनन न हो सके.
धन्यवाद...
महेश बारमाटे "माही"
This is disgusting to have such one sided laws.
ReplyDeleteI like your blog very much.
ReplyDelete@Virendra
ReplyDeletedhanyawad Veerendra ji...
aapne jo mere blog ko pasand kia...